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प्रिंस और पादरी भाग -2

प्रिंस और पादरी (1) 


प्रिंस बहुत परेशान नजर आ रहे थे । परेशानी की बात भी थी । आखिर उनकी खानदानी जागीर पर कोई ऐरा गैरा नत्थू खैरा कैसे कब्जा कर सकता था ? उसके पुरखे उस जागीर पर उसके खानदान का नाम लिखकर गये थे । मगर इस ऐरे गैरे ने सब कुछ बदल कर रख दिया । बरसों की मेहनत से हर गली मौहल्ले पर खानदान का नाम लिखा गया था , यह ऐरा गैरा उस पर पलीता लगा रहा था । उसके पुरखों का नाम मिटा रहा था । प्रिंस यह सब कैसे बर्दाश्त करता ? 
उसने खूब हुड़दंग मचाया । बड़ी पंचायत में जोरदार हो हल्ला करके "ऐरे गैरे" की नाक में दम कर दिया । कोई काम नहीं होने दिया । कभी एक समुदाय को भड़काया तो कभी अलग अलग जातियों से आंदोलन करवाया । जब किसी भी प्रयास से बात नहीं बनी तो दुश्मन देशों से हाथ मिला लिया । मगर दाल यहां भी नहीं गली । पता नहीं ये "ऐरा गैरा" किस मिट्टी का बना था, जरा भी गुस्सा नहीं आता था इसे । प्रिंस ने उसे जी भरकर गालियां भी दी मगर वह उन्हें "जहर" समझ कर पी गया और पहले से ज्यादा ताकतवर होता चला गया । प्रिंस ने बरसों की मेहनत और खैरात से तैयार किया गया "ईको सिस्टम " को भी काम पर लगा दिया । मगर अब लोग इस ईको सिस्टम की चालबाजी को समझ गये थे । इसलिए ईको सिस्टम की बातों पर कोई यकीन ही नहीं करता था । प्रिंस की हालत दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी । खिसियाहट के कारण उसकी गालियों की संख्या में भी बेतहाशा वृद्धि होती जा रही थी । लाख कोशिशों के बाद भी सत्ता वापसी की बात बन नहीं रही थी । 
राजमाता प्रिंस को किंग बनाना चाहती थी । साम दाम दंड भेद सब तरह के हथकंडे अपना लिए मगर हर बार सत्ता सुंदरी और दो कदम दूर हो जाती थी । जड़खरीद गुलामों को कुछ समझ नहीं आ रहा था । चमचों में भी अब कुछ कुछ असंतोष उभर रहा था । कुछ चमचे प्रिंस को छोड़कर चले गये तो कुछ "ऐरे गैरे" के साथ हो लिए । राजमाता का धीरज अब जवाब देने लगा था । उसने "जड़खरीद गुलामों" की एक विशेष बैठक बुलाई और कहा "हमने तुम्हारे लिए क्या क्या नहीं किया ? आज तुम जिस हैसियत में हो वह सिर्फ हमारे खानदान के कारण ही हो वरना तो तुम लोग किसी काबिल नहीं हो । प्रिंस कब से छटपटा रहे हैं सत्ता सुंदरी के लिए मगर तुम सब लोग तो गुलछर्रे उड़ाने में मशगूल हो । ऐसा कोई काम तुम लोगों ने किया ही नहीं जिससे प्रिंस को सत्ता हासिल हो सके । अब मुझे यह बताओ कि ऐसा क्या करना चाहिए जिससे सत्ता सुंदरी प्रिंस के गले में जयमाला डाल दे" ? 

"जड़खरीद गुलामों" में सन्नाटा पसर गया । कानाफूसी होने लगी । मगर सामने बोलने की हिम्मत कोई जुटा ना सका । राजमाता और प्रिंस के सामने बोलने की जुर्रत कौन कर सकता था ? जिसने भी कुछ बोला, उसका कैरियर बरबाद कर दिया गया । सब गुलाम अपनी औकात समझते थे इसलिए चुप ही रहे । 

जब राजमाता ने बोलने के लिए जोर दिया तब हिम्मत करके दो चार सीनियर गुलामों ने दबे स्वर से "नया सदर" बनाने की बात कही तो इस सुझाव पर प्रिंस और राजमाता बुरी तरह से बिफर गये । "सदर" के पद पर तो उनका खानदानी अधिकार है, इसे कैसे छोड़ सकते थे वे लोग ? राजमाता के स्वामीभक्त लोगों ने आनन फानन में ऐसे लोगों को धक्के मारकर बाहर निकाल दिया । अब और किसी गुलाम की हिम्मत शेष नहीं बची थी जो कुछ कह सके । इसलिए एक "चरण वंदक" खड़ा हुआ और राजमाता के चरणों में लोट लगाकर प्रिंस के जूतों के तलवे चाटकर बोला 
"गुस्ताखी माफ हुजूर । हम लोग तो आपके जड़ खरीद गुलाम हैं । आज तक कभी हमने आपके सामने एक भी शब्द बोला है क्या ? हम तो अब यह भी भूल गए हैं कि हमारे मुंह में भी एक जबान है जो खाना खाने के अलावा बोलने के काम भी आती है । हुजूर, आप ही हमारे माई बाप हो । हम तो बस आपके हुक्म के गुलाम हैं और आपके हुक्म की पालना करते हैं, बाकि और कुछ नहीं करते हैं । अब आप ही हुक्म फरमाइए कि हमें क्या करना है और क्या नहीं । हम सब आपकी कृपा पर निर्भर हैं । आप जैसा कहेंगे, हम लोग वैसा ही करेंगे" । इतना कहकर वह चरण वंदक राजमाता और प्रिंस की चरण रज माथे पर लगाकर राजकुमारी के पैरों तले बैठ गया । 

इतना शानदार भाषण सुनकर राजमाता खुश हो गईं । उसे विश्वास हो गया कि 'हाथी अभी मरा नहीं है' । अभी तो खानदानी रसूख बरकरार है ।  प्रिंस का चेहरा खुशी के मारे गुडहल के फूल की तरह खिल गया था यह तकरीर सुनकर । उसे विश्वास हो गया था कि एक न एक दिन उसे सत्ता सुंदरी अवश्य ही मिलेगी । ये जड़खरीद गुलाम ही दिलवाएंगे उसे । मगर वो समय कब आयेगा ? इसका कोई प्लान है क्या ? 


जड़खरीद गुलामों में अब न तो दिमाग बचा था और न ही कुछ कर गुजरने का जज्बा । वे तो बस 3G की जय बोलने का ही काम करते थे । सुबह राजमाता की जय , दोपहर को प्रिंस की और रात में राजकुमारी की । यहां तक कि वे अपने देश की जय बोलना भी भूल गये थे । अब ऐसे में नीति बनाने का काम प्रिंस के बॉडीगार्ड करने लगे थे । वे ही नीति नियंता बन गये थे । 

एक बॉडीगार्ड खड़ा हुआ और बोलने लगा "यह देश सनातनी परंपराओं का देश रहा है । जिसने जितना त्याग किया उसने उतना ही पाया है । सिद्दार्थ ने जब राज पाट छोड़ा , वन गमन किया तब वे भगवान बने । श्रीराम ने जब वन वन भ्रमण किया । कुटिया कुटिया गये और आमजन को गले लगाया तब जाकर राजा रामचंद्र बने" । 

श्रीराम का नाम लेने से राजमाता कुपित हो गईं । राजमाता श्रीराम का अस्तित्व मानती ही नहीं थी । वे यीशु में पूर्ण विश्वास रखती थीं । प्रिंस भी राजमाता के पदचिन्हों पर चल रहा था । जब राजमाता ने भृकुटि टेढी करके बॉडीगार्ड को देखा तो वह एक बारगी सहम गया । मगर दृढता पूर्वक कहने लगा 
"हे राजमाता । मुझे ज्ञात है कि आपके कानों को भगवान राम और कृष्ण का नाम सुनना कतई पसंद नहीं है । मगर यह देश है तो उन्ही का । लोगों के मन में बसे हैं ये दोनों । इसलिए हमें उन्ही का सहारा लेना होगा । प्रिंस को चाहे दिखावे के लिए ही सही मंदिर मंदिर जाना होगा । तिलक लगाना होगा" । 
"तो फिर हमारे 'क्रॉस' का क्या होगा ? यदि प्रिंस मंदिर जाएगा तो क्रॉस का क्या होगा ? हमारे प्रभु यीशु नाराज नहीं हो जाएंगे क्या" ? 

बॉडीगार्ड कुछ सोचते हुए बोला "हे राजमाता , आप चिंता ना करें । मेरे पास इस समस्या का समाधान है । प्रिंस भगवान यीशु के भक्त बने रहेंगे । हम उनके गले में क्रॉस लटके रहने देंगे । कपड़ों से वह 'क्रॉस' ढक जायेगा इसलिए किसी को नहीं दिखेगा । प्रिंस को कोट पैंट पहना देंगे और ऊपर से 'जनेऊ' धारण करवा देंगे जो लोगों को दिखता रहेगा । यानि मूल तो 'क्रॉस' ही रहेगा पर दिखावे के लिए 'जनेऊ' ऊपर रहेगा । कहो, क्या विचार है" ? 

इस युक्ति से राजमाता प्रसन्न हो गईं । आम के आम और गुठलियों के दाम । वाह , कैसा सुंदर फॉर्मूला फिट किया है । अंदर क्रॉस और बाहर जनेऊ । यीशु भी खुश और लोग भी खुश । लेकिन राजमाता ने एक शर्त रख दी कि प्रिंस को जितने मंदिरों में ले जाया जायेगा उसके दुगने उसे चर्च और मस्जिद में भी ले जाया जायेगा । यह शर्त सहर्ष मान ली गई और आनन फानन में प्रिंस के वन गमन का कार्यक्रम तैयार हो गया । 

वन जाने के नाम से ही प्रिंस भड़क गया । उसे तो विदेश जाने की आदत थी न कि वन जाने की , इसलिए उसका भड़कना उचित था । वन जाने के लिए उसे "भगवा" वस्त्र पहनने पड़ते और प्रिंस "भगवा" के नाम से ऐसे चिंता था जैसे बैल लाल वस्त्र देखकर चिढता है । 

तब विदेश से एक टी शर्ट मंगवाई गई । यद्यपि यह टी शर्ट 50000 रुपए की थी लेकिन प्रिंस के लिए पैसे का कोई महत्व नहीं था । ऐसी बीस पच्चीस टी शर्ट मंगवा ली गईं और प्रिंस के निजी स्टॉफ को दे दी गई । प्रभु यीशु को सफेद रंग पसंद है इसलिए टी शर्ट भी सफेद रंग की ही मंगवाई गई  । अब समस्या आई कि वन में कुटिया कौन बनाएगा ? कुटिया भी जगह जगह बनानी पड़ेगी । प्रिंस ने कुटिया में रहने से इंकार कर दिया । प्रिंस का बाथरूम भी AC वाला है इसलिए प्रिंस को कुटिया भी AC वाली ही चाहिए । वह भी समस्त आधुनिक सुख सुविधाओं वाली । 

शेष अगले अंक में 

श्री हरि 
11.9.22 

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14 Comments

Radhika

18-Mar-2023 10:57 AM

Nice

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Pallavi

13-Sep-2022 06:26 PM

Nice 👍

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Chirag chirag

13-Sep-2022 05:02 PM

Nice post 👍

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